Add To collaction

पागल था

पागल था ✍️श्याम सुंदर बंसल

आज भी विद्यालयों के दिन याद है जब मै गुमसुम सा रहा करता था
बात करने की न तमीज न ढंग बस अपने आप में ही खोया रहता था।

सामने के कुर्सियों पर बैठकर बगल के लड़ाकियों को देखा करता था । न बात करने की हिम्मत न सामने जाने की हिम्मत बस उनको छुप छुपाकर देखा करता था ।

विद्यालयों के बाद विश्वविद्यालय की बारी आई थी एक ही कक्षा में बैठकर भी उससे अंजान था वो दिल खोलकर बातें सारी करती थी और मैं कही किताबों में डुबा करता था सबसे बड़ा बेअकल मैं हुआ करता था

सालों बाद जब मुझको हुआ मुहब्बत का एहसास उसके करीब आने को जी चाहता था दिल की बात जुबान पर आ ही गई इक रोज मैं तुमको चाहता हूं यह उसको बतलाया था ।

डरी हुई सहमी हुई सी लगी थी वो जब गलियों में उससे मिलने जाता था लेकर बच्चों वाले उपहार उसके हाथों मे देने जाता था

कुछ हुआ मेरे जीवन में ऐसा उसके काबिल नहीं सोचने पर मजबूर हुआ था चल दिया सबसे दुर अलग दुनियादारी की ओर खुद को लायक कहने का बुखार जो हुआ था

आज सालों बाद मेरी तमन्ना ऊपरवाले ने पुरा कर दिया भेज दिया जीवन में उसको सारा जीवन सरल कर दिया आज उसके साथ हँसी खुशी जीवन की कामना हृदय में लिए चलता हूं आज हजारों तकलीफ है मेरे जीवन में बस उसके साथ से ही हर मुश्किलों का सामना करता हूं

   7
2 Comments

Varsha_Upadhyay

27-Sep-2023 07:51 PM

Nice 👍🏼

Reply